एक बार की बात है कि हरियाणा राज्य के जींद जिले के निडाना गाँव के महाबीर पिंडा के खेत में गेंहू की फसल में मंडूसी बिना कोई खरपतवारनाशक का स्प्रे किए अपने आप पीली हो कर सूखने लग रही थी। महाबीर के बुलावे पर कीट कमांडो किसानो ने मौके पर जाकर बारीकी से निरिक्षण किया। इन्होने पाया कि थानेदार के जूतों के रंग का कीट मंडूसी के पौधों का तने के निचले हिस्सों से रस चूस रहा था। और ध्यान से देखने पर यह कीट मंडूसी कि जडों पर भी बहुतायत में पाया गया।
सारे किसान मारे खुशी के उच्छल पड़े ,”ओह ! हमने मंडूसी ख़त्म करने का कुदरती इलाज ढूंढ़ लिया।” किसानो कि यह खुशी क्षणिक ही सिद्ध हुई जब इन्हें पता चला कि यह कीट तो गेहूँ के पौधों पर भी हमला करता है। चिंतित किसानों ने और ज्यादा ध्यान से अवलोकन शुरू किया तो पाया कि खेत में इस अल का हत्यारा फफुन्दीय रोगाणु भी मौजूद है। इस रोगाणु की कारगरता अच्छी खासी पाई गई। फिर तो किसानों ने आस पास खड़े गैरफसली पौधों पर इस कीट का भक्षण करनेवाले सिरफोड़ मक्खी के बच्चे तथा लेडीबग के बच्चे व प्रौढ़ ढूंढ़ निकाले।
“जीवस्य जीव रिपु मक्षिकाया शत्रु घृतं।” संस्कृत की इस लोकोक्ति को याद करते हुए किसान घर को चल दिए। महीने बाद महाबीर के खेत से बिना कोई खरपतवारनाशक स्प्रे किए, मंडूसी खेत से गायब थी। मंडूसी का यह रसचूसने वाला कीट तो शायद धान की जड़ का अल/चेपा हो सकता है। इस कीट को खत्म करने वाले रोगाणु की पहचान करने में कोई भी विशेषकर कीटविज्ञानी या रोगाणुविशेषग हमारी मदद कर सकता है। शायद यह रोगाणु बेवरिया बेसियाना नाम की फफूंद हो सकती है अगर यह सही है तो फिर स्तनपाईयों को सावधान रहने की जरुरत है क्योकि यह फफूंद स्तनपाईयों के लिए भी इतनी ही घातक होती है |