पेड़ बचाने में बड़ा योगदान दे रही है मोक्षदा हरित प्रणाली

अंतिम संस्कार में बड़ी मात्रा में लकड़ी का उपयोग होता है, जो कि पेड़ों के कटने की एक बड़ी वजह भी है। एक दाह संस्कार में अमूमन 400 से 500 किलो लकड़ी का उपयोग होता है।

मोक्षदा समिति की स्थापना हरिद्वार में विनोद अग्रवाल ने लगभग 30 वर्ष पहले की थी। हरिद्वार में स्थित खड़खड़ी शमशान घाट में उन्होंने देखा था कि गरीब लोग पैसों के अभाव में कम लकड़ियों से अंतिम संस्कार करते हैं और अधजले शवों को गंगा जी में बहा देते हैं।

फिर यही गंगा प्रवाह हरकी पौड़ी पर पहुंचता है। विनोद अग्रवाल जी ने इस समस्या को समझा और भारत सरकार के सहयोग से मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली की शुरुआत की गई। अब इस प्रणाली से देश के सात राज्यों में 54 यूनिट संचालित हो रही हैं।

‘मोक्षदा हरित शवदाह प्रणाली से शव दहन करने में मात्र 100 से 170 किलो की लकड़ी का प्रयोग होता है। दिल्ली समेत देश के सात राज्यों के कुछ शवदाह गृहों में इसका इस्तेमाल हो रहा है।
50 से अधिक मोक्षदा चिताओं पर प्रतिवर्ष 25 हजार से अधिक दाह संस्कार हो रहे हैं।

एक मोटे अनुमान के अनुसार इस मोक्षदा प्रणाली के उपयोग से  प्रतिवर्ष करीब दो लाख पेड़ों को बचाया जा रहा है। जबकि देश में हर वर्ष करीब छह सात करोड़ वृक्ष सिर्फ अंतिम संस्कार में प्रयुक्त होते हैं।

हरित शवदाह प्रणाली अष्ट धातु से बनी विशेष चिता है, जो धातु के फ्रेम में जमीन से ऊपर है, जिसमें आसानी  से हवा जा सकती हैं, जो लकड़ी से निकलने वाली पूरी तपिश को शवदाह करने में सहायक बनाती है। चिता जब जलती है, तो उसमें 1000 डिग्री का तापमान होता है। परंपरागत जमीन की चिता में हवा का प्रवेश आसानी से नहीं होता, इस कारण इसमें ज्यादा लकड़ी का उपयोग होता है, जबकि इस तकनीक में पूरे तापमान का उपयोग होता है। यह कुछ वैसा ही है जैसे एक भट्टी में नीचे पंखा लगाकर आग को तेज किया जाता है।

इससे शवदाह में लकड़ी का खर्च घटकर आधा ही रह जाता है। इस चिता फ्रेम के नीचे एक अष्ट धातु की ट्रे भी लगी भी होती है, जिसमें चिता की राख और फूल एकत्रित हो जाते हैं। करीब ढाई घंटे के बाद इस ट्रे को बनाए गए स्थान पर रख दिया जाता है, जिसमें अगले दिन लोग फूल चुनने की विधि को पूरा कर सकते हैं। ट्रे को हटाने के बाद चिता फ्रेम को 20 मिनट में पानी से ठंडा करके फिर से अंतिम संस्कार के लिए उपयोग किया जा सकता है।

परंपरागत और मोक्षदा में कोई विशेष अंतर नहीं है। अंतर बस इतना है कि वह जमीन पर होती है, जबकि मोक्षदा फ्रेम पर है। दोनों में धार्मिक व्यवस्था व मान्यता एक जैसी है। फूल चुनने व कपाल क्रिया जैसी धार्मिक प्रथाएं इसमें भी पूरी की जाती हैं।