तम्बाकूआ-सुंडी सामनी के समय म्हारे हरियाणा में कपास के साथ-साथ अरहर व डैंचा के पौधों पर दिखाई देने वाला एक पर्ण-भक्षी कीड़ा है। इस सुंडी को कीट-वैज्ञानिक Spodoptera litura कहते-लिखते हैं। अंग्रेज इसे टोबैको केटरपिलर के नाम से पुकारते हैं | इसके परिवार को Noctuidae व वंश-क्रम को Lepidoptera कहा जाता है। इस कीड़े का आगमन कपास की फसल में कमोबेस प्राय हर साल ही देखने में आता है।
फसल में पत्तों को खा लेना भी नुकशान है तो यह काम इस कीड़े की सुंडियां ही करती हैं। शुरुवाती काल में ये सुंडियां झुण्ड में रहकर पत्ती की निचली सतह खुरच कर खाती हैं। परिणामस्वरूप पत्तियों का ढांचा भर रह जाता है। बाद में ये सुंडियां तितर-बितर हो जाती हैं और रात में अकेली घुमने लगती हैं। अब ये पत्तों के अलावा कलियों, फूलों, पंखुड़ियों को भी खा जाती हैं। ये सुंडियां खा-पीकर 3.5 से 4.0 सै.मी. तक लम्बी हो जाती हैं। इनका शरीर मखमली काला होता है जिसकी पीठ पर पीली-हरी धारियाँ होती हैं व अगल-बगल में सफेद बैंड होते हैं।
इस कीड़े के ये भूरे-सुनैहरी प्रौढ़ बड़े सुन्दर दिखाई देते हैं। प्रौढ़ पतंगे की लम्बाई 22 मि.मी. व इसके पंखों का फैलाव तक़रीबन 40 मी.मी. होता है। इस कीड़े की प्रौढ़ मादाएं अपने जीवन काल में 1000 -1200 अंडे देती हैं। ये अंडे पत्तियों की निचली सतह पर किनारों के पास गुच्छों में दिए जाते हैं। प्रत्येक गुच्छे में 70 -100 अंडे होते हैं। अण्डों के ये गुछे पीले रंग की गंदगी और रोओं से ढके रहते हैं। इन अण्डों से 4-5 दिन में इस कीट की सुंडियां निकलती हैं। ये सुंडियां छ: अंतर्रुपों से गुजरते हुए प्युपेसन में जाने तक लगभग 15 से 30 दिन का समय ले लेती हैं।
इस कीट की प्यूपल अवस्था जमीन के अन्दर 10 -12 दिन में पूरी होती है। इस पतंगे का प्रौढीय जीवन सात-आठ दिन का होता है। कपास के साथ-साथ तम्बाकू, अरंड, चना, मिर्च, बंदगोभी, फूलगोभी, मूंगफली | अरहर व दैंचा आदि के पौधों पर भी बखूबी फलती-फूलती पाई जाती है, ये तम्बाकूआ-सुंडी।
इस कीड़े की विभिन्न अवस्थाओं के सहारे अपना जीवन निर्वाह करने वाले दुनिया भर के मांसाहारी कीट भी हरियाणा के कपास परितंत्र में मिल जायेंगे। निडाना के किसानों ने अपने कपास के खेतों में कई किस्म की लेडी बीटल देखली जो इस कीट के अंडे व तरुण सुंडियां खाकर जीवन की गाड़ी को आगे बढाती हैं। इन्होने इनके अण्डों व सुंडियों का जीवन रस पीते हुए कातिल बुग्ड़े, सिंगू बुग्ड़े तथा इनके बच्चे देख लिए। इस कीट के प्रौढ़ पतंगों का उड़ते हुए शिकार करती लोपा-मक्खी व डायन-मक्खी मौके पर देख चुके हैं।
ये किसान, इस तम्बाकूआ-सुंडी को परजीव्याभित करते ब्रेकन सम्भीरका व इसके कोकून देख चुके हैं। इन कोकुनो से कोटेसिया को बाहर निकलते भी निडाना के किसान अपनी आँखों से देख चुके हैं। इन तम्बाकूआ-सुंडियों का भक्षण करते हुए नौ किस्म के हथजोड़े(Praying mantis) भी किसान देख चुके हैं। जब किसानों ने एक हथजोड़े के साथ तीन तम्बाकूआ-सुंडियों को शीशी में रोक दिया तो इन तीन पर्णभक्षी सुंडियों ने मिल कर इस मांसाहारी कीट हथजोड़े को खा लिया | शायद अपनी जान बचाने के लिए।
कपास के खेतों में मकड़ियां भी इस कीट को खाते हुए किसानों ने देखी हैं।
किसानों का कहना है कि जब हमारे खेतों में कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के रूप में इतने सारे कीट प्राकृतिक तौर पर पाए जाते हैं तो हमें बाज़ार से खरीद कर कीटनाशकों के इस्तेमाल की आवश्यकता कहाँ है?
अब एक सवाल आपसे? जवाब चाहिये। यह पर्णभक्षी कीड़ा हमारे यहाँ कपास की फसल में सितम्बर व् अक्तूबर के महीनों में क्यों आता है जबकि इसके खाने लायक पत्ते तो कपास की फसल में शुरुआत से ही होते हैं।