इस धरती पर यू माणस भी गजब का प्राणी सै। मोह और माया के चक्कर में सब कुछ बाँट लिया। इस बंदर बाँट में शेर नै ना भूमि बक्शी और ना भगवान। निजी मुनाफे पर आधारित इस बंटवारे में सबकी रोळ भी खूब मारी गयी। दूध पीने के लिए अपने पास तो भैस, गाय, ऊँट, भेड़ व् बकरी आदि चोखा दूध देने वाले पशु रख लिये अर राम को पकड़ा दिया यू रंग-बिरंगा कीड़ा।
सवारी के लिये अपने पास तो गधे, घोड़े व् खच्चर रख लिये अर अर राम को पकड़ा दिया यू रंग-बिरंगा कीड़ा। सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान एवं सूक्ष्म राम की रोळ तो इस माणस ने मारी ही मारी। ऊपर तै भारी भरकम अहसान और रख दिया न्यू कह कर कि भगवन आपको तो हमने छांट कर ऐसा जन्नौर दिया है जो आपके घर से कुछ नही खायेगा। इसका दूध भी मुफ्त में पीना और सवारी भी मुफ्त में करना।
इसके बच्चे और सयाने दोनों आक्खटे के पत्ते खाकर कर गुज़ारा कर लेते हैं। भगवान पै न तो ना ही कही गई और ना ही हाँ। बस उसके मुहँ तै तो इतना लिकड़ा अक है धरतीपुत्रो पर इस जन्नौर को किस नाम से पुकारा करोगे? इसमें क्या दिक्कत है राम जी। नकुले इसको राम का घोड़ा कह लेंगे अर दूध के लाड़े इसको राम की गाय कह लेंगे। तभी से हमारे यहाँ इस कीड़े को राम की गाय या घोड़े के रूप में जाना जाता है। पर इस कलयुग में कीट वैज्ञानिकों की खाप ने अपनी पंचायत में इस कीड़े का नाम Poekilocerus pictus रख लिया। इसका परिवार Pyrogomorphinae तथा इसका वंशक्रम Orthroptera तय कर दिया गया।
राम इस कीड़े का दूध कैसे पीता है और इसकी सवारी कैसे करता है? हमें तो आज तक मालूम नहीं हुआ। पर हमें यह जरुर मालूम है कि यह शाकाहारी कीड़ा कलकता से पेशावर तक पाया जाता है। पर पायेगा वहीं जहाँ आक के पौधे होंगे। पाये भी क्यों नहीं? आक इस कीड़े का प्रमुख एवं सबसे ज्यादा पसंद भोजन जो ठहरा। पर इसका मतलब यह नही कि ये आक के अलावा कुछ भी नहीं खायेंगे।
भूखे मरते तो रो पीटकर 200 से भी ज्यादा पौधों की प्रजातियों पर गुज़ारा कर लेते हैं। जिनमें कपास, गेहूँ, मक्का, लोबिया, अरण्ड, भिंडी व बैंगन आदि भी शामिल हैं। सुना है 1973 की साल पाकिस्तान के झंग जिला में चिनाब नदी के आसपास इस कीड़े ने कपास, खरभुजे, मिर्च व लोकी की फसल में काफी नुकशान पंहुचा दिया था। ऐसा तो इस कीड़े के निजी जीवन में अत्याधिक मानवीय हस्तेक्षप के कारण हो सकता है। अगर कोई आक़ के पौधे ही खत्म कर डाले तो ये बेचारे क्या करेंगे?
अपने प्रौढीय जीवन में प्रवेश के एक-दो दिन बाद ही इस कीट की मादायें सहवास के योग्य हो जाती हैं। इनके जोड़े 6-7 घंटे तक रतिरत रहते हैं। ये मादायें अपने जीवनकाल में 15-16 बार रतिरत होती है और हर बार नये नर के साथ। मादा अपने जीवन काल में एक या अधिक से अधिक दो अंड-फली देती है। हर अंड-फली में तकरीबन 150 अंडे होते हैं। इन अंडो से निकले निम्फ आक के पौधे के पास दिखाई देते हैं। पैदाइस से प्रौढ़ विकसित होने तक ये निम्फ आमतौर पर छ: बार कांजली उतारते हैं। खाने के लिए आक के पत्तों की उपलब्धता के बावजुद इस कीट के प्रौढ़ स्वाद बदली के लिये आपस में एक दुसरे को भी खा जाते हैं।