अंग्रेजों द्वारा थ्रिप्स कहा जाने वाला यह चुरड़ा कपास की फसल में पाया जाने वाला एक छोटा सा रस चुसक कीट है | कीट- वैज्ञानिक इसे Thrips tabaci के नाम से पुकारते हैं | बनावट में चरखे के ताकू जैसा यह कीट पीले-भूरे रंग का होता है | इस कीट की मादा अपने प्रजनन-कल में 4-6 प्रतिदिन के हिसाब से 50-60 अंडे देती है | इन अण्डों की बनावट इंसानी गुर्दों जैसी होती है | इन अण्डों से ताप व आब के मुताबिक तीन से आठ दिनों में शिशु निकलते हैं | इनका यह शिशुकाल सात-आठ दिनों का होता है तथा प्युपलकाल दो से चार दिन का | इस कीट के निम्फ व प्रौढ़ पत्तियों की निचली सतह पर नसों के आस-पास पाए जाते हैं | इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ कपास के पौधों के पत्तों की निचली सतह को नसों के आस-पास खुरच कर रस पीते हैं | परिणामस्वरूप पत्तियों की निचली सतह चांदी के समान चमकने लगती है तथा उपरवाली सतह बादामी रंग की हो जाती है | ज्यादा प्रकोप होने पर पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ने लगती हैं | अंत में ये प्रकोपित पत्तियां सुख कर गिर भी जाती हैं |
यह कीड़ा कपास की फसल के अलावा प्याज़, लहसुन व तम्बाकू आदि फसलों पर भी अपना जीवन निर्वाह व वंश वृद्धि करता है | पर कपास की फसल में चुरड़ा अंकुरण से लेकर चुगाई तक बना रहता है | वो अलग बात है कि इस कीट की संख्या आर्थिक हानि पहुचाने के स्तर यानिकि दस निम्फ प्रति पत्ता पर कभी-कभार ही पहुँचती है | इस का मुख्य कारण कि इस कीट को खाने वाले कीड़े भी कपास कि फसल में लगातार बने रहते हैं | परभक्षी-मकड़िया जूं, छ: बिन्दुवा-चुरड़ा, दिद्दड़-बुग्ड़ा व् एन्थू-बुग्ड़ा इस चुरड़े का खून चूस कर गुज़ारा करने वालों में प्रमुख हैं | भान्त-भान्त की लेडी बीटल व इनके बच्चे भी इस चुरड़े को खा कर अपना पेट पालते हुए कपास के खेत में पाए जाते हैं।
जिला जींद में किसानों द्वारा कपास में नलाई-गुड़ाई होने पर या तापमान में गिरावट होने पर इस कीट की संख्या में घटौतरी दर्ज की गयी है |