उत्तर पूर्वी राज्यों में तीन चौथाई से ज्यादा जंगल नष्ट

अमेरिका स्थित मैरीलैंड विश्वविद्यालय ने सैटेलाइट से प्राप्त करोड़ों तस्वीरों के विश्लेषण के आधार पर यह दावा किया है कि भारत में साल 2001 से 2020 के बीच वनों के दायरे में पांच फीसदी यानी लगभग 20 लाख हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई है। इस अध्ययन में यह खुलासा किया गया है कि तीन-चौथाई से अधिक जंगल अकेले पूर्वोत्तर के सात राज्यों में नष्ट हुए हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार वनक्षेत्र में सिकुड़न का मतलब केवल वनों की कटाई ही नहीं है। पेड़ों की संख्या में कमी के पीछे जंगलों की आग सहित अन्य प्राकृतिक कारण भी हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि बीते दो दशक में पूर्वोत्तर के सात राज्यों में वनों के दायरे में सर्वाधिक 76.7 फीसदी यानी लगभग 19.3 लाख हेक्टेयर की कमी देखने को मिली। ओडिशा इस मामले में आठवें, केरल नौवें और छत्तीसगढ़ दसवें पायदान पर रहा।

असम में सबसे खराब स्थिति

अध्ययन पर गौर करें तो भारत में वर्ष 2001 से 2020 के बीच असम ने वनों का सर्वाधिक नुकसान झेला । पूर्वोत्तर के इस राज्य में जंगलों के दायरे में 9.8 फीसदी यानी 2.69 लाख हेक्टेयर की कमी रिकॉर्ड की गई। 60 फीसदी क्षति कारबी अंगलॉन्ग (97.4 हजार हेक्टेयर) और दीमा हसाओ (63.2 हजार हेक्टेयर) में हुई।

नगालैंड राज्य में सबसे ज्यादा नुकसान

अध्ययन के मुताबिक राज्य स्तर पर देखें तो 2001 से 2020 के बीच नगालैंड ने सर्वाधिक 17% वन गवाए हैं। कुल 2.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगे पेड़ नष्ट हुए हैं। मोन, मोकोचांग और पेरेन जिलों में 57% हानि दर्ज की गई। दूसरे स्थान पर त्रिपुरा रहा और इसका वनक्षेत्र 15% सिकुड़ गया।

अन्य राज्यों की स्थिति

मिजोरम में वनों के दायरे में 2.47 लाख हेक्टेयर, नगालैंड में 2.25 लाख हेक्टेयर, अरुणाचल प्रदेश में 2.22 लाख हेक्टेयर, मणिपुर में 1.96 लाख, मेघालय में 1.95 लाख और त्रिपुरा में 1.02 लाख हेक्टेयर की कमी देखने को मिली।