सड़ांधला हरिया कपास के खेत में अक्सर दिखाई दे जाने वाला एक पौधाहरी बुग्ड़ा है जो पौधों का जीवन-रस पीकर अपना गुजारा करता है व अपनी वंश-बेल चलाने के प्रयास करता है | इस चक्कर में कपास की फसल को थोडा-बहुत नुकशान भी हो जाये तो, इसे कोंई परवाह भी नही | पर हरियाणा में कपास की फसल में इस कीट ने कभी कोंई नुकशान पहुचाया हो, ऐसी कोंई भी ऍफ़.आई.आर. किसी कीट- वैज्ञानिक ने दर्ज नही करवाई | और तो और इस सड़ांधले बुग्ड़े की गिनती तो कपास के नामलेवा हानिकारक कीटों में भी नही होती |
वास्तव में तो यह सड़ांधला हरिया मक्का, सोयाबीन व् कपास समेत किसी भी पौधे का रस चूस कर गुज़ारा कर लेता है | ये बुग्ड़े तना, पत्ते, फुल, फल व बीज समेत पौधे के किसी भी भाग से रस चूस लेता है | सड़ांधले बुग्ड़े इस काम को अपने नुकीले डंक के कारण ही कर पाते हैं |
कीट वैज्ञानिक इस सड़ांधले बुग्ड़े को नामकरण की द्विपदी प्रणाली के मुताबिक Acrosternum hilare कहते हैं | इसके परिवार का नाम Pentatomidae व वंशक्रम का नाम Hemiptera. इस बुग्ड़े के प्रौढ़ एवं निम्फ, दोनों ही इनके साथ छेड़खानी होने पर अपने शारीर से दुर्गन्धयुक्त तरल निकालते हैं | शायद इसीलिए इन्हें सड़ांधले बुग्ड़े कहा जाता है | अंडे से प्रौढ़ के रूप में विकसित होने के लिए सड़ांधले बुग्ड़े को 30 से 35 दिन का समय लग जाता है | इनका प्रौढीय जीवन 60 दिन के लगभग होता है |
कपास की फसल में इस कीट का भक्षण करते हुए भान्त-भान्त के पक्षियों व मकड़ियों को जिला जींद के रूपगढ, ईगराह, निडाना, निडानी, ललित खेडा व् भैरों खेडा के किसानों ने अपनी आँखों से देखा है | इन किसानों ने तो इस सड़ांधले बुग्ड़े के अण्डों में अपने बच्चे पलवाते एक महीन सम्भीरका को भी देख लिया |