इंसानों द्वारा छेड़े जाने पर ये बिन्दुआ बुग्ड़े बेचैन करने वाली तीक्ष्ण गंध छोड़ते हैं। इस गंध रूपी हथियार को ये कीट दुसरे कीटों से अपना बचाव करने में भी इस्तेमाल करते हैं। आलू की फसल को नुकशान पहुचने वाली कोलोराडो बीटल के तो ग्राहक होते है ये बिन्दुआ बुग्ड़े। इस बुग्ड़े के नवजात पहली कांजली उतारने तक तो पौधों का जूस पीकर गुजारा करते हैं | इसके बाद तो ताउम्र मांसाहारी रहते हैं |
कीट वैज्ञानिक बताते हैं कि ये निम्फ प्रौढ़ विकसित होने तक तक़रीबन इस बीटल के 300 अंडे, 4 लार्वे व 5 प्रौढ़ डकार जाते हैं | प्रौढ़ जीवन जीने के लिए प्रतिदिन दो के लगभग बीटल के लार्वा तो मिलने ही चाहियें | इसी जानकारी का फायदा उठाकर कीटनाशी उद्योग द्वारा इन बुग्ड़ों को भी जैविक-नियंत्रण के नाम पर बेचा जाने लगा है। साधारण से साधारण जानकारी को भी मुनाफे में तब्दील करना कोई इनसे सीखे।
साधारण ज्ञान को विज्ञानं बनाकर तथा फिर इसे तकनीकी बताकर ये कीटनाशी उद्योग किसानों को तो बेवकूफ बना सकते है पर प्रकृति को नही | जिला जींद के निडानी गावं की खेत पाठशाला के किसानों संदीप व राजेश तथा खेती विरासत मिशन, जैतों(पंजाब) के गुरप्रीत, अमनजोत, बलविन्द्र व अमरप्रीत ने कीट-कमांडो रणबीर मलिक व कप्तान के नेतृत्त्व में कांग्रेस घास पर मेक्सिकन बीटल के गर्ब का खून चूसते हुए इस बुग्ड़े के निम्फ को मौके पर देखा व फोटो खीचा |
इन्होने इस बुग्ड़े के प्रौढ़ एवं निम्फ की मेक्सिकन बीटल के बच्चे का परभक्षण करते हुए विडिओ तैयार की | इसी गावं के खेतो में रजबाहे के किनारे खड़े कांग्रेस घास के पत्तों पर कीट-कमांडो रणबीर मलिक ने इस बिन्दुवा बुग्ड़े के अण्डों से एक परजीव्याभ निकलते देख लिया | यहाँ के किसानों ने मिलीबग के परजीव्याभों अंगीरा, जंगिरा व फंगिरा की तर्ज़ पर बंगिरा नाम दिया है |
किसी ने सच ही कहा है, “जी का जी बैरी” | कांग्रेस घास को उपभोग करती है मेक्सिकन बीटल और उसके बच्चे | बिन्दुआ बुग्ड़े मेक्सिकन बीटल और उसके बच्चे को खा-पीकर गुजारा करते है | बंगिरा अपने बच्चे इन बिन्दुआ बुग्ड़ों के अण्डों में पालता है |
काश! हरियाणा के सभी किसान इस प्राकृतिक कीटनाशी को पहचानते होते तो वे भी रणबीर, मनबीर व इनके साथियों की तरह कीटनाशी मुक्त खेती कर रहे होते |