तुरंगी ततैया एक परजीव्याभ कीट हैं जो पर्यावरण की दृष्टि से हमारे लिए खास महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनका जीवनयापन व् वंशवृद्धि दुसरे कीटों के जीवन की कीमत पर निर्भर करता है यानिकी ये तुरंगी ततैया हमारी फसलों में कीटनाशियों वाला काम हमारे लिए मुफ्त में करते हैं | अंग्रेजों द्वारा Ichneumon wasps पुकारे जाने वाले इस कीट की ज्यादातर प्रजातियाँ अपने अंडे Lepidoptera कुल की सुंडियों के शरीर पर देती हैं |
इन अण्डों से निकले इनके लार्वा इन सुंडियों को खाकर ही पलते-बढ़ते हैं | इनके खाने का सलीका भी गज़ब का होता है | शुरुवात में इल्लियाँ अपनी आश्रयदाता सुंडियों के किसी भी महत्वपूर्ण अंग को नही खाती. बल्कि ये सुंडियों के वसा-ऊतक खाकर ही अपना गुज़ारा करती हैं | पूर्ण विकसित होने पर ही ये सुंडियों के महतवपूर्ण अंगों को खाना शुरू करती हैं | अत: आश्रयदाता सुंडियां परजीव्याभित होने पर कमजोर हो जाती हैं व इनका विकास धीमा पड़ जाता है और अंतत: इनकी मौत हो जाती है |
वैसे तो इस कीट की विश्वभर में हजारों प्रजातियाँ पाई जाती हैं जो रंग-रूप में एक-दुसरे से भिन्न होती हैं | पर इस कीट की सभी प्रजातियों की मादाओं के पेट के सिरे पर एक लम्बा व पतला अंडनिक्षेपक होता है | धागेनुमा लम्बे एंटीने, पतली कमर, पारदर्शी पंख व लम्बा व पतला अंडनिक्षेपक ही इस कीट की पहचान को आसान बनाते हैं | पर अफ़सोस है, आज कल हरियाणा में कपास की फसल में ये तुरंगी ततैया इका-दुक्का ही दिखाई देती है |