जिला जींद के ज्यादातर किसानों की तरह निडाना निवासी पंडित चन्द्र पाल ने भी अपने खेत में एक एकड़ बी.टी.कपास लगा रखी है। इस कपास की फसल में देसी शहद की मक्खियों (Apis indica) ने अपना छत्ता बना कर डेरा जमा रखा है। एक महिना पहले जब पंडित जी ने इस छाते को देखा तो खुशी के मारे उछल पड़ा था। उछले भी क्यों न ! चन्द्र पाल ने एक लंबे अरसे के बाद देसी शहद की मक्खियों का छत्ता देखा था, वो भी ख़ुद के खेत में।
वह तो यह समझे बैठा था कि फसलों में कीटनाशकों के इस्तेमाल के चलते शहद की इन हिन्दुस्तानी मक्खियों का हरियाणा से सफाया हो चूका है | इसीलिए वह इस विशेष जानकारी को घरवालों व पड़ोसियों से बांटने के लिए, अपने आप को रोक नहीं पाया था। चाह ऎसी ही चीज होती है। इसी चक्कर में, पंडित जी ने रोज खेत में जाकर इस छत्ते को संभालना शुरू कर दिया। कुछ दिन के बाद उसका ध्यान इस बात की तरफ भी गया कि ये मक्खियाँ इस खेत में कपास के फूलों पर नहीं बैठ रही।
मज़ाक होने के डर से उन्होंने हिच्चकते–हिच्चकते अपनी इस बात को गावं के भू. पु. सरपंच रत्तन सिंह से साझा किया | दोनों ने मिलकर इस बात को लगातार तीन दिन तक जांचा व परखा। मन की मन में लिए, रत्तन सिंह ने इस वस्तुस्थिति को अपना खेत अपनी पाठशाला के बाहरवें सत्र में किसानों के सामने रखा। तुंरत इस पाठशाला के 23 किसान व डा. सुरेन्द्र दलाल कपास के इस खेत में पहुंचे। आधा घंटा इस खेत में माथा मारने के बावजूद किसी को भी कपास के फूलों पर एक भी मक्खी नजर नहीं आई ।
यह तथ्य सभी को हैरान कर देने वाला था। बी.टी.टोक्सिंज, कीटों की मिड-गट की पी.एच.,व कीटों में इस जहर का स्वागती-स्थल आदि के परिपेक्ष में इस तथ्य पर पाठशाला में खूब बहस भी हुई। पर कोई निचोड़ ना निकाल सके | हाँ! डा. सुरेन्द्र दलाल ने उपस्थित किसानों को इतनी जानकारी जरुर दे दी की उसने स्वयं अपनी आँखों से पिछले वीरवार को ललित खेडा से भैरों खेडा जाते हुए सड़क के किनारे एक झाड़ी पर इन देसी शहद की मक्खियों को देखा है।
देसी झाड़ के छोटे–छोटे फूलों पर इन मक्खियों को अपने भोजन व शहद के लिए लटोपिन हुए देखने वालों में भैरों खेडा का सुरेन्द्र, निडाना का कप्तान व पटवारी रोहताश भी शामिल थे। भैरों खेडा के लोगों ने तो शहद की इस हिन्दुस्तानी मक्खी को आखटे के फूलों से शहद इक्कठा करते भरी दोपहरी में भी देखा है | इस तथ्य को हम विश्लेषण हेतु इंटरनेट के मध्यम से जनता के दरबार में प्रस्तुत कर रहे हैं। इस मैदानी हकीकत से निडाना में अनावरण यात्रा पर आयी कृषि-अधिकारीयों व वैज्ञानिकों की टीम भी रूबरू हुई | पर देसी शहद की मक्खियों के इस अनेपक्षित व्यव्हार की व्याख्या किसी के पास नही थी |