इनो एक परपेटिया कीटनाशी

कीट नियंत्रण के नाम पर आज बाज़ार में जितने ब्राण्ड के जहरीले कीटनाशी उपलब्ध हैं, उनसे कहीं ज्यादा किस्म के कीटनाशी कीट हमारी फसलों में मौजूद हैं। इन्हीं कीटनाशी कीटों में एक यह है- इनो। निडाना व ललित खेड़ा के किसान इसी नाम से जानते हैं। इनो अपने बच्चे सफ़ेद मक्खी के शिशुओं के पेट में पलवाती है। इसीलिए निडाना कीट साक्षरता केंद्र के किसान इसे परपेटिया कीटनाशी कहते हैं।

बामुश्किल आधा – एक मिलीमीटर के इस कीड़े का नामकरण दुनिया की किसी भी जन भाषा में नहीं हुआ। पर कीट वैज्ञानिकों की भाषा में जरुर इसको Encarcia spp. के रूप में पुकारा जाता हैं। वैज्ञानिकों की छोटी सी दुनिया में इसका वंशक्रम Hymenoptera व कुणबा Aphelinidae बताया जाता है। नाम में क्या रखा है। नाम तो कुछ रख लो। असली बात तो है इनको पहचानने की, समझने की व परखने की।

सुनैहरी पीले रंग की इस संभीरका की मादा प्रजनन के लिए कपास के पत्तों पर सफ़ेद मक्खी की कालोनियों की तलाश में घूमती है। यहाँ सफेद मक्खी के शिशुओं को अपने एंटिनों से टटोल-टटोल कर उपयुक्त पालनहार की खोज करती है। उपयुक्त पालनहार मिलते ही यह मादा अपना एक अंडा पत्ते की सतह और मेज़बान के मध्य चुपके से रख देती है। इस तरह से इस छोटी सी ततैया को अपने छोटे से जीवन काल में सवासौ-डेढ़ सौ अंडे देने होते हैं।

अत: इतने ही पालनहार ढूंढने पड़ते हैं। अंडे से निकलते ही इस ततैया का बच्चा पालनहार के पेट में घुस जाता है। और वहीं बैठा-बैठा आराम से मेज़बान को अन्दर से खाकर पलता-बढ़ता रहता है। इनो का यह बच्चा पूर्ण विकसित होकर प्युपेसन भी मेज़बान के शारीर में ही करता है। और फिर एक दिन इस मेज़बान के शारीर में गोल घट्टा कर एक प्रौढ़ अपना स्वतंत्र जीवन जीने के लिए बाहर निकलता है।

इस सारी कार्यवाही में मेज़बान को तो निश्चित तौर पर मौत ही नसीब होती है। इस कीट के प्रौढ़ अपना गुज़र-बसर सफ़ेद मक्खियों को खा-पीकर करते हैं। है ना गज़ब की प्राकृतिक कीटनाशी यह छोटी सी संभीरका। सफ़ेद मक्खी के लिए यमदूत और फसल के लिए रक्षक।